Dhari Devi Temple History/ Dhari Devi Temple Mystery / उत्तराखंड में चारधाम समेत कई ऐसे मंदिर हैं। जिनकी अपनी एक अलग ही मान्यता हैं ऐसा ही एक मंदिर हैं माता धारी देवी का जिनके बारे में कई सारी मान्यताऐं प्रसिद्ध हैं। केदारनाथ में जो त्रासदी हुई थी कहाँ जाता हैं कि माँ का ही प्रकोप था।
Dhari Devi Temple History in Hindi-
18वीं सदी के इस मंदिर में काली माता के अवतार धारी देवी की पूजा की जाती हैं। यह मंदिर झील के ठीक बीचों-बीच स्थित है। देवी काली को समर्पित इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां मौजूद मां धारी उत्तराखंड के चारधाम की रक्षा करती हैं। इस माता को पहाड़ों और तीर्थयात्रियों की रक्षक देवी कहा जाता हैं।
द्वापर युग से स्थापित हैं मंदिर-
ऐसी मान्यता हैं कि एक बार भीषण बाढ़ से मंदिर बह गया था। साथ ही साथ उसमें मौजूद माता की मूर्ति भी बह गई और वह धारो गांव के पास एक चट्टान से टकराकर रुक गई। कहते हैं कि उस मूर्ति से एक ईश्वरीय आवाज निकली, जिसने गांव वालों को उस जगह पर मूर्ति स्थापित करने का निर्देश दिया। इसके बाद गांव वालों ने मिलकर वहां माता का मंदिर बना दिया। पुजारियों की मानें तो मंदिर में मां धारी की प्रतिमा द्वापर युग से ही स्थापित हैं।
धारी देवी माता का मंदिर कहाँ हैं-
उत्तराखंड के श्रीनगर से करीब 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
दिन में तीन बार बदलता माँ का स्वरूप-
इस मंदिर में मौजूद माता की मूर्ति दिन में तीन बार अपना रूप बदलती है। मूर्ति सुबह में एक कन्या की तरह दिखती है, फिर दोपहर में युवती और शाम को एक बूढ़ी महिला की तरह नजर आती है। यह नजारा वाकई हैरान कर देने वाला
Dhari Devi Temple Story (धारी देवी की कथा)-
माता धारी देवी 7 भाइयों की इकलौती बहन थी। माता धारी देवी अपने सात भाइयों से अत्यंत प्रेम करती थी ,वह स्वयं उनके लिए अनेक प्रकार के खाने के व्यंजन बनाती थी और उनकी अत्यंत सेवा करती थी यह कहानी तब की है जब माँ धारी देवी केवल सात साल की थी । परन्तु जब उनके भाइयों को यह पता चला कि उनकी इकलोती बहन के ग्रह उनके लिए खराब हैं तो उनके भाई उनसे नफरत करने लगे ।
वैसे तो माता धारी देवी के सातों भाई माँ धारी देवी से बचपन से ही नफरत करते थे ,क्योंकि माँ धारी देवी का रंग बचपन से ही सांवला था ।(Dhari Devi Temple History)
माँ धारी देवी अपने सात भाइयों को ही अपना सब कुछ मानती थीं क्योंकि इनके माता - पिता के जल्दी गुजर जाने के कारण धारी देवी का पालन - पोसण अपने भाइयों के हाथों से ही हुआ था और उनके लिए अपने भाई ही सब कुछ थे ।
धीरे धीरे समय बीतता गया और धारी माँ के भाइयों की माँ के प्रति नफरत बढ़ती गयी, परन्तु एक समय ऐसा आया कि माँ के पाँच भाइयों की मोत हो गयी । और केवल दो शादी - शुदा भाई ही बचे थे और इन दो भाई की परेशानी और बढ़ती गयी क्योंकि इन दो भाइयों को ऐसा लगा कि कंही हमारे पाँच भाइयो की मोत हमारे इस इकलोती बहन के हमारे प्रति खराब ग्रहों के कारण तो नी हुयी क्योंकि उन्हें बचपन से यही पता चला था कि हमारी बहन के ग्रह हमारे लिए खराब हैं
उन दोनों भाइयों ने वही किया, इन दो भाइयों ने जब वह कन्या अर्थात माँ धारी केवल 13 साल की थी तो उनके दोनों भाइयों ने उनका सिर उनके धड़ से अलग कर दिया ओर उनके मृत - शरीर को रातों रात नदी के तट में प्रवाहित कर दिया।
इस कन्या का सिर वहाँ से बहते - बहते कल्यासौड़ के धारी नामक गाँव तक आ पहुँचा, जब सुबह - सुबह का वक्त था तो धारी गाँव में एक व्यक्ति नदी तट के किनारे पर कपड़े धुल रहा था तो उन्होंने सोचा कि नदी में कोई लड़की बह रही है ।
उस व्यक्ति ने कन्या को बचाना चाहा परन्तु उन्होंने यह सोचकर कि में वहाँ जाऊँ तो जाऊँ कैसे, क्योंकि नदी में तो बहुत ही ज्यादा पानी था और वह इस डर से घबरा गए कि में कहीं स्वंय ही न बह जाऊँ और उसका धैर्य टूट गया और उसने सोच लिया कि में अब वह कन्या को नहीं बचायेगा।
अचानक एक आवाज नदी से उस कटे हुए सिर से आयी जिसने उस व्यक्ति का धैर्य बढ़ा दिया, वह आवाज थी कि तू घबरा मत और तू मुझे यहाँ से बचा। और मैं तेरे को यह आश्वासन दिलाती हूँ कि तू जहाँ जहाँ पैर रखेगा में वहाँ वहाँ पे तेरे लिए सीढ़ी बना दूँगी, कहा जाता है कि कुछ समय पहले ये सीडिया यहाँ पर दिखाई देती थीं ।
कहा जाता है कि जब वह व्यक्ति नदी में कन्या को बचाने गया तो सच में अचानक एक चमत्कार हुआ, जहाँ जहाँ उस व्यक्ति ने अपने पैर रखे वहाँ - वहाँ पर सीढ़ियाँ बनती गयी ।
जब वह व्यक्ति नदी में गया तो उस व्यक्ति ने उस कटे हुये सिर को जब कन्या समझ कर उठाया तो वह व्यक्ति अचानक से घबरा गया वह जिसे कन्या समझ रहा था वह तो एक कट हुआ सिर है । उस कटे हुए सिर से आवाज आई कि तू घबरा मत में देव रूप में हूँ और मुझे एक पवित्र, सुन्दर स्थान पर एक पत्थर पर स्थापित कर दे ।
केदारनाथ की त्रासदी आयी थी माँ के कोप से-
अलकनंदा के किनारे स्थित प्राचीन धारी देवी के मंदिर को 15 जून 2013 को जल विद्युत परियोजना के डूब क्षेत्र से विस्थापित किया गया था और 15-16 जून को उतराखंड में केदारनाथ त्रासदी हुई थी जिसे पुजारी वर्ग समेत धारी देवी मे आस्था रखने वालों ने मां का प्रकोप माना था।