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जन्माष्टमी का शुभ मुहूर्त व्रत तथा पूजा की सम्पूर्ण विधि

भगवान श्रीकृष्ण का जन्म आज से 5247 युग पूर्व द्वापर युग में मथुरा में भाद्रपद महा के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को बुधवार रोहणी नक्षत्र के समय ठीक रात 12 बजे मथुरा के कारागृह में देवकी और वसुदेव जी के यहाँ भगवान श्रीकृष्ण कन्हैया जी का जन्म हुआ था। भगवान कृष्ण का जन्म जन्माष्टमी के दिन होने से हम लोग उस दिन भगवान श्रीकृष्ण का जन्मदिवस धूम-धाम से मनाते हैं। आइये जानते है क्या है जन्माष्टमी की व्रत तथा पूजा की विधि।

हिन्दू धर्म में  ये भी मान्यता हैं, कि जन्माष्टमी के दिन व्रत करने तथा सच्चे मन से भगवान का पूजन करने से जन्म-जन्मान्तर के कष्ट दूर हो जाते हैं।

इस बार जन्माष्टमी को लेकर काफी लोगो के मन में ये शंका हैं,कि वो किस दिन जन्माष्टमी का व्रत रखे तथा भगवान श्रीकृष्ण का जन्मदिवस मनाये। क्योकि कई पंचाग में जन्माष्टमी 11 अगस्त तो कई पंचाग में जन्माष्टमी 12 अगस्त तो कई पंचागों में जन्माष्टमी 13 अगस्त को बतायी जा रही हैं। चलिए हम आपकों को इसके बारे में सम्पूर्ण जानकारी विस्तार से बताते हैं।

जन्माष्टमी की तिथि को लेकर शंका -

हिन्दू मान्यता के अनुसार धर्मसिन्धु और निर्णयसिन्धु जो प्रमुख ग्रन्थ हैं। इन धर्म ग्रन्थो से ही तिथियों त्यौहारो का निर्णय किया जाता हैं। इन धर्म ग्रन्थो के अनुसार भाद्रमहा पक्ष के कृष्णपक्ष के अष्टमी तिथि का प्रारम्भ मंगलवार यानि 11 अगस्त सुबह 9 बजकर 6 मिनट से प्रारम्भ हो रही हैं। तथा ये 12 अगस्त सुबह 11 बजकर 16 तक रहेगी।

वही रोहनी नक्षत्र की बात करे जिसमें भगवान श्रीकृष्ण जी का जन्म हुआ था। वो 12 अगस्त को मध्यरात्रि में सुबह 3 बजकर 25 मिनट से प्रारम्भ होगी। तथा 14 अगस्त सुबह 5 बजकर 21 मिनट तक रहेगी।

इसलिए जन्माष्टमी को लेकर लोगो के मन में शंका हैं, कि वो किस दिन जन्माष्टमी का व्रत करे तथा भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाये क्योकि भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव मनाने के लिए अष्टमी तिथि तथा रोहणी नक्षत्र दोनो का होना जरूरी हैं।

किस दिन मनाये जन्माष्टमी -

लेकिन हम आपको बता दे कि जन्माष्टमी के व्रत तथा पूजा का पूर्ण फल प्राप्त करने का शुभ दिन 12 अगस्त ही हैं। वैष्णव परम्परा के अनुसार तथा सूर्योउदय व्यापनी तिथि के अनुसार यानि आप अष्टमी तिथि का पूर्ण फल प्राप्त करना चाहते है तो 12 अगस्त यानि बुधवार का दिन जन्माष्टमी पर्व को मानाने के लिए सर्वक्षेष्ठ हैं।

यदि आप अपने पंचाग के अनुसार 11 और 13 को भी जन्माष्टमी मनाते हैं। तो भी कोई परेशानी की बात नहीं हैं। क्योकि ये दिन भी भगवान श्रीकृष्ण के बनाये हुए दिन हैं।

जन्माष्टमी पूजा विधि-

प्रातः सुबह उठकर स्नानादि करके भगवान श्रीकृष्ण का पूजन करे भगवान को भी स्नानादि करा कर नये वस्त्र पहनाये तथा भगवान श्रीकृष्ण के पूजन में तुलसी जी का उपयोग जरूर करे। साथ ही साथ इस दिन गौ-माता की भी सेवा करे। रात्रि में जगकर भगवान का कीर्तन-भजन करे यदि आप रात्रि भर नहीं जग पाते तो भगवान के जन्म होने तक कीर्तन-भजन करे।

इस दिन भगवान का जन्म खीरे में से किया जाता हैं। तथा बहुत लोग रात्रि के समय भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के बाद खाना खा लेते हैं। उनको ऐसा नहीं करना चाहिए इससे उनका व्रत खंडित माना जायेगा। दूसरे दिन सुबह स्नानादि और पूजा करके ही अन्न ग्रहण करना चाहिए। यही जन्माष्टमी की उचित व्रत तथा पूजा विधि है।

अगर आप पहली बार व्रत हैं, तो क्या करे-

यदि आप पहली बार जन्माष्टमी का व्रत करना चाहते हैं। तो आपको सबसे पहले सुबह उठकर स्नानादि करके भगवान का पूजन करके सूर्य भगवान के सामने हाथ में जल और तुलसी लेकर संकल्प करे तथा भगवान से अपनी इच्छा बताकर व्रत की शुरूआत करे। कहाँ जाता हैं, कि किसी भी व्रत का पूर्ण फल तभी प्राप्त होता हैं। जब आप व्रत संकल्प लेकर करते हैं।

क्या-क्या चढ़ाये भगवान को प्रसाद में-

जन्माष्टमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण को माखन और मिश्री का भोग लगाना चाहिए। क्योकि भगवान को माखन और मिश्री अत्यधिक प्रिय हैं। अगर आप माखन मिश्री का भोग नहीं लगा पाते हैं। तो आपको धनिये की पंजीरी बनाकर भगवान को चढ़ाना चाहिए। और भगवान श्रीकृष्ण के प्रसाद में भी तुलसी का प्रयोग करे। जन्माष्टमी व्रत तथा पूजा विधि में यह मुख्य है। 

जन्माष्टमी में क्या फलहार करे -

जन्माष्टमी के दिन सबसे शुद्ध् फलहार फलो को माना गया हैं। और फलों के साथ दूध से बनी चीजो को भी माना गया हैं। लेकिन यदि आप व्रत में सेंधा नमक का सेवन करते हैं,तो आपको एक टाईम ही सेंधा नमक का प्रयोग करना चाहिए।

भगवान श्रीकृष्ण को स्नान यदि आपके पास यमुना जी का जल हैं, तो उससे कराये। यदि आपके पास यमुना जी का जल नहीं तो साधारण जल से ही यमुना जी का स्मरण करके भगवान श्रीकृष्ण को स्नान कराये।

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