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नवरात्री में कैसे करे कन्या पूजन किन बातो की रखे ध्यान जिससे मिलेगा लाभ सम्पूर्ण जानकारी

नवरात्रि कन्या पूजन 2020 ; जैसा कि सभी को पता हैं, कि नवरात्रो में कन्यापूजन का महत्व बहुत अधिक हैं, सभी घरों में नवरात्रो में कन्या पूजन किया जाता हैं, लेकिन लोगो को कन्या-पूजन करने का सही तरीका नहीं पता होता हैं,चलिए हम आपको बता देते हैं, कैसे करे कन्या पूजन जिससे मिलेगा सम्पूर्ण लाभ

कन्या पूजन का सही तरीका-

नवरात्रो में हर एक घरों में कन्या-पूजन किया जाता हैं, लेकिन क्या आपको पता हैं, नवरात्रो में किस उम्र की कन्याओं को नवरात्रो में कन्या खिलाना चाहिए। यदि आप अपने घरों में कन्या पूजन कर रहे हैं, तो आपको 2 साल से लेकर 7 साल तक की कन्याओं को कन्या खिलाना चाहिए। 

सबसे पहले आपको कन्याओं को एक दिन पहले ही कन्या खाने के लिए आमत्रित कर देना चाहिए। उसके बाद जब कन्याये घर पर कन्या-भोज के लिए आये तो सबसे पहले उनका पैरे को धुलना चाहिए और पोछना चाहिए, तथा उसके बाद उन्हें स्वच्छ स्थान पर बैठाना चाहिए। 

कन्या पूजन के समय कन्याओं को रोली, चावल और हल्दी का टीका लगाना चाहिए। कन्याओ को प्रसाद में पूडी, खीर, हलवा या उबले चने भी खिला सकते हैं। लेकिन इस बात का ध्यान दे कि जिस थाली में आप कन्याओं को भोज कराते हैं, उनको खुद अपने हाथों से धूले।

कन्याओं को भोज कराने के बाद उनको दान में रूमाल, चुनरी या उनके उपयोग की वस्तु उन्हे दान में एक फल के साथ दे।

जब कन्याए अपने घर को जाये तो उनके पैर छूकर उनसे आशीर्वाद लेकर उनको विदा करे।

पूजन में ना भूले लंगूर को खिलाना-

नवरात्रि कन्यापूजन यदि आप नवरात्रो में अपने घर कन्याओ को भोज कराते हैं, तो आपको उनके साथ एक लंगूर को भी खिलाना चाहिए। क्योकि ऐसा कहा जाता हैं, यदि कन्याओं को भोज कराते समय आप लंगूर को नहीं खिलाते हैं, तो आपको इसका सम्पूर्ण फल नहीं मिलेगा। इसलिए जब भी कन्या-भोज करे, उनके साथ लंगूर को जरूर आमंत्रित करे।

क्यो किया जाता कन्या पूजन कहानी-

कन्या-भोज कराने के पीछे की कहानी का संबंध वैष्णव माता से हैं, वैष्णव माता को कलयुग की माता भी कहा जाता हैं, कहानी के अनुसार बहुत समय पहले माता रानी के एक परम भक्त थे, जिनका नाम श्रीधर था, वो नवरात्रो में अपने घर पर कन्याभोज करा रहे थे। तभी उन कन्याओं के बीच माता रानी भी बालिका का रूप धारण करके वहाँ कन्याभोज में कन्या खाने आती हैं। और जब सारी कन्याये कन्या खाकर चली जाती हैं।

तब माता रानी अपने परम भक्त श्रीधर से उन्होने उनके घर भोज का आयोजन करने को कहा और कहा कि इस भोज में वो पूरे गाँव के लोगो को आमंत्रित करे। जिसके  बाद माता रानी के कहने पर श्रीधर ने ऐसा ही किया और वही पर भैरवनाथ भी आया जिसके बाद वहाँ से भैरवनाथ के अंत की कहानी की शुरूआत होती हैं।

भैरवनाथ को माता रानी के हाथो मृत्यु प्राप्त होती हैं, और माता रानी उन्हे आशीर्वाद भी देती हैं, कि जो भी भक्त माता रानी के दर्शन को आयेगे। उनका दर्शन तब तक सम्पूर्ण  नहीं माना जायेगा जबतक वो भैरवनाथ के दर्शन ना कर ले।

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