Panjshir जिसपर आजतक तालिबान द्वारा जीतना मुश्किल रहा है। पंजशीर घाटी तालिबान के खिलाफ आजतक मजबूती से खड़ा नज़र आ रहा है। पंजशीर ने अन्य देशो से सहायता माँगी हैं।
Panjshir का इतिहास-
पंजशीर घाटी का अर्थ है पांच सिंहों की घाटी। इस घाटी का नाम एक किंवदंती से जुड़ा हुआ है। और कहा जाता है, कि 10वीं शताब्दी में, पांच भाई जो बाढ़ के पानी को काबू करने में सफलता प्राप्त किये थे। उन्होंने गजनी के सुल्तान महमूद के लिए एक बांध बनाया था और माना जाता है। इसी के बाद से इस घाटी को पंजशीर घाटी कहा जाता है। 3 इस घाटी में डेढ़ लाख से भी अधिक लोग रहते हैं। और इस घाटी में सबसे अधिक ताजिक मूल के लोग रहते हैं।
पंजशीर घाटी जोकि काबुल के उत्तर में हिंदू कुश में स्थित है। यह क्षेत्र 1980 के दशक में सोवियत संघ और फिर 1990 के दशक में तालिबान के खिलाफ प्रतिरोध का गढ़ माना जाता हैं। Panjshir घाटी हमेश से प्रतिरोध का केंद्र बना रहा, यही मुख्य वजह हैं कि इस क्षेत्र को कभी भी कोई जीत न सका न तो सोवियत संघ, न अमेरिका और न ही तालिबान इस क्षेत्र पर कभी अपना नियंत्रण कर पाया हैं।
अफगानिस्तान के पहले उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह का जन्म पंजशीर प्रांत में हुआ था और वह वहीं ट्रेन हुए हैं। विशेषज्ञो का कहना हैं कि पंजशीर घाटी ऐसी जगह पर है जो इसे प्राकृतिक किला बनाता है और यही मुख्य वजह हैं कि आज तक इस पर कोई हमला नहीं कर पाया हैं। पंजशीर के प्रतिरोध के प्रमुख नेताओ में अहमद मसूद, अमरुल्लाह सालेह, मोहमम्द खान हैं।
पंजशीर घाटी क्षेत्र को नॉर्दर्न एलायंस के नाम से भी जाना जाता हैं। नॉर्दर्न एलायंस 1996 से लेकर 2001 तक काबुल पर तालिबान शासन का विरोध करने वाले विद्रोही समूहों का गठबंधन था। इस गठबंधन में अहमद शाह मसूद, अमरुल्ला सालेह के साथ ही करीम खलीली, अब्दुल राशिद दोस्तम, अब्दुल्ला अब्दुल्ला, मोहम्मद मोहकिक, अब्दुल कादिर, आसिफ मोहसेनी और भी लोग शामिल थे।
क्या कहा अमरूल्ला सालेह ने-
अमरुल्ला सालेह इस समय में कहां है यह अभी साफ़ नहीं कहा जा सकता है लेकिन स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक वह पंजशीर घाटी में हैं। उन्होंने 19 अगस्त को ट्विटर पर ट्वीट करके कहा हैं कि 'देशों को कानून के शासन का सम्मान करना चाहिए, ना कि हिंसा का अफगानिस्तान इतना बड़ा है कि पाकिस्तान निगल नहीं सकता है। यह तालिबान के शासन के लिए बहुत बड़ा है। अपने इतिहास को अपमान पर एक अध्याय न बनने दें और आतंकी समूहों के आगे नतमस्तक न हों।'
तबसे कहा जा रहा हैं कि वो इस समय पंजशीर में ही मौजूद हैं। तो वहीं अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद ने पश्चिमी देशों से मदद मांगी है। वॉशिंगटन पोस्ट में उन्होंने लिखा है, 'मैं पंजशीर घाटी से लिख रहा हूं। मैं अपने पिता के नक्शेकदम पर चलने को तैयार हूं। मुजाहिदीन लड़ाके एक बार फिर से तालिबान से लड़ने को तैयार हैं। हमारे पास गोला-बारूद और हथियारों के भंडार हैं जिन्हें मैं अपने पिता के समय से ही जमा करता रहा हूं क्योंकि हम जानते थे कि यह दिन आ सकता हैं।
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