RRR Real Story ;क्या आपको पता हैं हालही में राजामौली की आयी RRR Film जो काफी ज्यादा हिट रही हैं। उस फिल्म में जो कहानी दिखायी गयी हैं वो एक वास्तविक कहानी हैं। इसकी कहानी भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी अल्लूरी सीता रामा राजू और कौमाराम भीम के बारे में हैं।
RRR Real Story in Hindi-
अल्लूरी सीताराम राजू और कोमाराम भीम जो भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी थे। इनके बारे में सभी को जानना चाहिए। क्योंकि इन दोनो ने भारत के लिए इतना कुछ किया हैैं, कि इनका कर्ज एक भारतीय के रूप में हम शायद ही कभी उतार पाये। तो अब देर किस बात की आइये एक नजर डालें अल्लूरी सीताराम राजू और कोमाराम भीम पर और जानें कि क्यों हमें इनका एहसानमंद रहना चाहिए।
हमारे देश भारत को आजादी तो 15 अगस्त 1947 को मिल गयी थी। मगर इससे पहले लगभग 100 सालों तक मुगल और अंग्रेजों ने हमपर शासन किया था। इसी दौरान बाहर से आए इन लुटेरों ने देश को लूटा और देश की संस्कृति को बर्बाद करने की कोशिश की थी। जहां मुगलों ने भारत में फूट डालकर बर्बर लुटेरों की तरह इस देश की संस्कृति शौर्य और इतिहास को बर्बाद करने की कोशिश की, वही अंग्रेजों ने भारत की शिक्षा व्यवस्था भारतीय-संस्कृति और भारत के स्वर्णिम इतिहास को मिटाने की भी पूरी कोशिश की थी।
Who's Alluri Sitarama Raju (कौन थे अल्लूरी सीताराम राजू)-
अल्लूरी सीताराम राजू का जन्म 1857 में विशाखापट्टनम में हुआ था। इनका जन्म 4 जुलाई 1897 को विशाखापट्टनम के पॉन्ड्रिक गांव में हुआ था । अल्लूरी सीतारामा राजू के पिताश्री का नाम वेंकटरामराजू और माताश्री का नाम सूर्यनारायणअम्मा था। बचपन मे अल्लूरी सीतारामा राजू के पिता वेंकट रामा राजू की मृत्यु हो गई थी। इस घटना के बाद अल्लूरी सीतारामा राजू अपने चाचा रामकृष्णन राजू के साथ पश्चिम गोदावरी जिले में नरसापुर गांव में रहने लगे ।
चाचा रामकृष्णन राजू पेशे से एक तहसीलदार थे और इन्होंने ही अल्लूरी सीतारामा राजू की बचपन में देखरेख की थी। चाचा ने बचपन से सीताराम को देश भक्ति और देश प्रेम की भावना सिखाया करते थे। उन्होंने हमेशा सीतारामा को कहा कि अंग्रेज भारत को लूट रहे और हमें इनसे अपना देश वापस लेना चाहिए।चाचा ने सीतारामा राजू की नरसापुर में टेलर हाई स्कूल में दाखिला करवा दिया।
इनको सांसारिक सुख अच्छे नहीं लगे और उन्होंने 18 साल की छोटी सी उम्र में साधु बनने का फैसला किया था। ऐसा कहा जाता हैं कि कम उम्र में ही उन्होंने मुंबई, बड़ोदरा, बनारस, ऋषिकेश की यात्रा की और देश के तमाम युवाओं की तरह अल्लूरी सीताराम राजू, महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित थे।
1920 के आस-पास इन्होने ने आदिवासी लोगों को शराब छोड़ कर अपनी समस्याओं को पंचायत में हल करने की सलाह दी थी। चूंकि इस समय तक देश अंग्रेजों के जुल्मों सीतम का साक्षी बन चुका था। इसका गहरा असर अल्लूरी सीताराम राजू पर भी हुआ और कुछ समय बाद उन्होंने महात्मा गांधी के अहिंसा के विचारों का त्याग कर दिया। इतना ही नहीं अल्लूरी सीताराम राजू ने अंग्रेज़ों के विरुद्ध संग्राम भी छेड़ा और अपना तीर-कमान लेकर अंग्रेजों का सफाया करने निकल पड़े थे।
1924 में उन्होंने दुनिया को उस वक़्त अलविदा कहा जब अंग्रेजी सैनिकों ने क्रांतिकारी अल्लूरी को पेड़ से बांध कर उन पर गोलियों की बौछार की थी। उनपर अंग्रेजो ने काफी यातानाएं की थी।
Who's Komaram Bheem (कौन थे कोमाराम भीम)-
कोमाराम भीम जी के बारे में कहा जाता हैं कि हैदराबाद की आजादी के लिये आसफ जाही राजवंश के खिलाफ विद्रोह की आग लगाई और लंबे समय तक संघर्ष किया। राजवंश के खिलाफ लड़ाई लड़ते हुए उन्होंने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा जंगलों में इधर- उधर भटकते हुए व्यतीत किया।
इनका जन्म 22 अक्टूबर 1901 को तेलंगाना के अधीर आबाद जिले में हुआ था। इन्होंने 1940 में जल जंगल और जमीन का नारा दिया था । इसका मतलब है जंगल से जुड़े जमीन जल और अन्य चीजों पर आदिवासी का हक है ।
यह सीताराम राजू से बहुत प्रभावित थे और उन्हीं से प्रेरणा लेकर वे अपने गांव के युवाओं के साथ मिलकर हैदराबाद के निजाम के खिलाफ हथियार उठाने को तय किया । कोमाराम भीम ने सीताराम राजू से प्रेरणा लेकर गोरिला तकनीक के मदद से हैदराबाद के निजाम से लड़ने को तैयार हो गये थे। उन्होंने आदिवासी क्षेत्र को एक स्वतंत्र गोंडवाना राज्य बनाने का ऐलान किया ।
Komaram Bheem के प्रभाव को देखते हुए हैदराबाद के निजाम ने प्रस्ताव को मान लिया मगर फिर गोमाराम ने उसे स्वतंत्रता संघर्ष के रूप में लेते हुए प्रस्ताव ठुकरा दिया । कोमाराम भीम ने हैदराबाद के निजाम को गुंड छोड़ने को कहा मगर निजाम नहीं माना और आदिवासियों पर अपनी प्रताड़ना जारी रखी।
इनके बारे में यह अफवाह फैलायी गयी थी कि वह काला जादू जानते हैं और इसी कारण पुलिस वालों ने उनके मरने के बाद भी उनके शरीर पर दर्जनों गोलियां दागी । कोमाराम और उनके 15 साथियों को उनके परिवार को ना सौंपते हुए उन्हें जला दिया गया था। कौमाराम और उनके साथियों को आज भी आदिवासी समाज देवता के रूप में पूजते हैं।
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