Shaheed Diwas Bhagat Singh, Rajguru, Sukhdev; Martyrs Day; भारत की आजादी का इतिहास बिना भगत सिंह,राजगुरू व सुखदेव के पूरा नहीं होता हैं। 23 मार्च 1931 को ब्रिटीश हुकुमत ने इन महान स्वतंत्रता सेनानियों को फाँसी दे दी। और ये तीनो हँसते-हँसते फाँसी के फंदे पर चढ़ गये। भले ही इस घटना को हुए कई साल गुजर गये हो लेकिन आज भी हमारे दिलों में ये तीनो जिंदा हैं।
भगत सिंह का जीवन परिचय-
Biography of Bhagat Singh; भगत सिंह का जन्म 28 सिंतबर 1907 में फैसलाबाद के जरावाला तहसील स्थित बंगा गाँव में हुआ था। जो आज पाकिस्तान में पड़ता हैं। बचपन से ही ये अंग्रेजो से घृणा करते थे। इसके पीछे कारण था उनके चाचा श्वान सिंह व अजीत सिंह का भारत की आजादी में सहयोग देना। उनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती कौर था। इनकी दादी ने इनका नाम भागो वाला रखा था। जिसका मतलब अच्छे भाग्य वाला क्योकि इसी दिन इनके चाचा जेल से रिहा हुए थे।
भगत सिंह करतार सिंह व लाला लाजपत राय से ज्यादा प्रभावित थे। 13 अप्रैल 1919 में जालियावाला बाग हत्याकांड ने उनके मन में अंग्रेजो के खिलाफ और अधिक घृणा बढ़ा दी। भगत सिंह ने पहले गाँधी जी द्वारा 1920 में चलाये गये आंदोलन में भाग लिया।
लेकिन जब 1921 में काकोरी कांड के बाद गाँधी जी द्वारा किसानो का साथ नहीं दिया गया। तब वो चन्द्रशेखर आजाद की गदर पार्टी का हिस्सा बन गये।
ऐसा कहा जाता हैं, कि भगत सिंह नास्तिक थे। उन्होने जेल में रहकर पत्र लिखा था जो लाहौर के समाचार पत्र द पीपल में 27 सितम्बर 1931 को प्रकाशित हुआ था।
ऐसा कहा जाता हैं, कि भगत सिंह के चाचा उनकी शादी कराना चाहते थे जिसके लिए उन्होने एक खटाल खोला भगत सिंह जब भी हिसाब करते थे। उनका हिसाब सहीं नहीं मिलता क्योकि वो दूध खुद पी जाते थे और लोगो को पिला देते थे।
भगत सिंह ने 17 दिंसबर 1928 को एक पुलिस अधीक्षक रहे जेपी सांडर्स को मारा था। भगत सिंह अपने क्रांतिकारी दोस्त बटुकेश्वर के साथ मिलकर अलीपुर रोड स्थित दिल्ली में ब्रिटिश के सेट्रंल असेम्बली में 8 अप्रैल 1929 को पर्चे व बम फेका। जिसके बाद अग्रेजो द्वारा क्रातिंकारियो को पकड़ने की रफ्तार तेज कर दी गयी।
भगत सिंह एक अच्छे दार्शिनिक लेखक व पाठक थे। उन्होने अकाली व कीर्ति नामक दो समाचार पत्रो का सम्पादन भी किया। उन्होने जेल में रहकर लिखा मैं नास्तिक क्यो हूँ।
उन्होने और उनके साथियो ने मिलकर 64 दिनो तक जेल में रहकर भूख हड़ताल की जिसमें उनके एक दोस्त यतीन्द्रनाथ दास की हड़ताल के समय मृत्यु हो गयी।
Shaheed Diwas-
23 मार्च 1931 को सेंट्रल जेल में भगत सिंह के जीवन के आखिरी पल उस दिन आँधी बहुत तेज आयी। जब भगत सिंह को फांसी दी गयी उस समय भगत सिंह व उनके दोस्तो को अपनी जान गवाने का डर नहीं था। अपने आखिरी क्षणों में उन्होने बिस्मिल की जीवनी पढ़ी। जिसके बाद भगत सिंह, राजगुरू व सुखदेव को फाँसी तथा बटुकेश्वर को आजीवन करावास की सजा सुनाई गयी। Shaheed Diwas Bhagat Singh
फांसी से पहले उन्होने कहा कि भगवान से एक बार फिर से इसी देश में पैदा करने की गुजारिश करूगाँ। आखिरी बार उनकी जुबान पर था। इंकलाब जिदांबाद उन्होने अपनी अंतिम इच्छा में अपने दोस्तो को गले लगाया।
उनके पुश्तैनी घर हेरिटेज साइट घोषित-
भगत सिंह के दादा के बनाये हुए घर को 4 साल पहले हेरिटेज साइट घोषित किया गया था। इसे सरंक्षित करने के बाद दो साल पहले पब्लिक के लिए खोल दिया गया। 2014 में इसकी मरम्मत के लिए 5 करोड़ रूपये का फंड दिया गया।
भगत सिंह के गाँव का नाम भगतपुरा रखा गया हैं। भगत सिंह फाउंडेशन उनकी यादो को पाकिस्तान में सजो कर रखता हैं।
ब्रिट्रिश हुकुमत के कोर्ट में याचिका-
Bhagat Singh व उनके साथियो को फांसी देने के खिलाफ भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन द्वारा लाहौर हाईकोर्ट में याचिका दायर की गयी हैं। उन्होने भगत सिंह, राजगुरू व सुखदेव को फाँसी देने के लिए ब्रिट्रीश हुकुमत से माफी की माँग की हैं। कहा हैं कि भगत सिंह का अदालती कत्ल किया गया हैं।
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